Class-12th Hindi- “बातचीत” Subjective Questions
Q.1. ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ क्या है ?
Ans- आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ का अर्थ है-वार्तालाप की कला। ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ के हुनर की बराबरी स्पीच और लेख दोनों नहीं कर पाते। इस हुनर की पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वतमंडली में है। इस कला के माहिर व्यक्ति ऐसे चतुराई से प्रसंग छेड़ते हैं कि श्रोताओं के लिए बातचीत कर्णप्रिय तथा अत्यन्त सुखदायी होती है। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है। सहृद गोष्ठी की विशेषता है कि वक्ता के वाकचातुर्य का अभिमान या कपट कहीं प्रकट नहीं हो पाता तथा बातचीत की सरसता बनी रहती है। कपट और एक-दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ का मूलतंत्र होती है। यूरोप के लोगों का ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ जगत् प्रसिद्ध है।
Q.2. अगर हममें वाशक्ति न होती तो क्या होता ?
Ans- हममें वाक्शक्ति न होती तो मनुष्य गूंगा होता, वह मूकबधिर होता। मनुष्य को सृष्टि की सबसे महत्वपूर्ण देन उसकी वाक्शक्ति है। इसी वाक्शक्ति के कारण वह समाज में वार्तालाप करता है। वह अपनी बातों को अभिव्यक्त करता है. और उसकी यही अभिव्यक्ति वाकशक्ति भाषा कहलाती है। व्यक्ति समाज में रहता है। इसलिए अन्य व्यक्ति के साथ उ पारस्परिक सम्बन्ध और कुछ जरूरतें होती हैं जिसके कारण वह वार्तालाप करता है। यह ईश्वर द्वारा दी हुई मनुष्य की अनमोल कृति है। इसी वाक्शक्ति के कारण वह मनुष्य है। यदि हममें इस वाकशक्ति का अभाव होता तो मनुष्य जानवरों की भाँति ही होता। वह अपनी क्रियाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। जो हम सुख-दुख इंद्रियों के कारण अनुभव करते हैं वह अवाक रहने के कारण नहीं कह पाते।
Q.3. मनुष्य की बातचीत का उत्तम तरीका क्या हो सकता है ? इसके द्वारा वह कैसे अपने लिए सर्वथा नवीन संसार की रचना कर सकता है ?
Ans- मनुष्य की बातचीत का सबसे उत्तम तरीका उसका आत्मवार्तालाप है। वह अपने अन्दर ऐसी शक्ति विकसित करे जिस कारण वह अपने आप से बात कर लिया करे। आत्मवार्तालाप से तात्पर्य क्रोध पर नियंत्रण है जिसके कारण अन्य किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुँचे। क्योंकि हमारी भीतरी मनोवृत्ति प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है। वह हमेशा बदलती रहती है। लेखक इस मन को प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आइना के रूप में देखता है जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कोई असंभव बात नहीं। अतः मनुष्य को चाहिए कि मन की चित्त को एकाग्र कर मनोवृत्ति स्थिर कर अपने आप से बातचीत करना चाहिए। इससे आत्मचेतना का विकास होगा। उस वाणी पर नियंत्रण हो जायेगा जिसके कारण दनिया में किसी से न वैर रहेगा और बिना प्रयास के हम बड़े-बड़े अजेय शत्रु पर भी विजय पा सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो हम सर्वथा एक नवीन संसार की रचना कर सकते हैं। इससे हमारी वाकशक्ति का दमन भी नहीं होगा। अतः व्यक्ति को चाहिए कि अपनी जिहवा को काबू में रखकर मधुरता से सिक्त वाणी बोले। न किसी से कटुता रहेगी न वैर। दुनिया सूबसूरत हो जायेगी। मनुष्य के बातचीत करने का सही उत्तम तरीका है।
Q.4. बातचीत शीर्षक कहानी का सारांश लिखें। अथवा, ‘बातचीत’ निबंध में निहित विचारों को स्पष्ट करें।
Ans- बालकृष्ण भट्ट आधुनिक हिन्दी गद्य के आदि निर्माताओं और उन्नायक रचनाकारों में एक हैं। बालकृष्ण भट्ट बातचीत निबंध के माध्यम से मनुष्य को ईश्वर द्वारा दी गई अनमोल वस्तु वाक्शक्ति का सही इस्तेमाल करने को बताते हैं। वे बताते हैं कि यदि वाक्शक्ति मनुष्य में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि का क्या हाल होता। सबलोग मानों लुज-पुंज अवस्था में कोने में बैठा दिए गए होते। बातचीत के विभिन्न तरीके भी बताते हैं। यथा घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। वे बताते हैं कि जहाँ आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, वहाँ बातचीत की भी अत्यन्त आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है वह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। इससे चित हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। यही नहीं, वे बतलाते हैं कि मनुष्य बोलता नहीं तबतक उसका गुण-दोष नहीं प्रकट होता। बेन जानसन का कहना है कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार हो जाता है। वे कहते हैं कि चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। यूरोप के लोगों में बातचीत का हुनर है जिसे आर्ट ऑफ कनवरसेशन कहते हैं। इस प्रसंग में ऐसे चतुराई से प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें कान को सुन अत्यंत सुख मिलता है। हिन्दी में इसका नाम सुहद गोष्ठी है। बालकृष्ण भट्ट बातचीत का उत्तम तरीका यह मानते हैं कि हम वह शक्ति पैदा करें कि अपने आप बात कर लिया करें।
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