Download Pdf|जन-जन का चेहरा एक 12th Hindi Chapter 9|लेखक के बारे में|पाठ का सारांश|VVI Subjectives Questions|VVI Objectives Questions

 

जन-जन का चेहरा एक

जन-जन का चेहरा एक कवि के बारे में

गजानन माधव मुक्तिबोध, अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के एक कवि के रूप में सामने आये थे। लेकिन नितांत प्रयोगशीलता की वायवीयता से बचते हुए इन्होंने वस्तुगत यथार्थ की कलात्मक अभिव्यक्ति के जटिल से सवाल को अपनी समग्र रचनायात्रा में साधने की कोशिश की। उनका यह मानना था कि जीवन और कला का अनुभव इतना संश्लिष्ट और उलझा हुआ है कि किसी एक विधा के खाँचे में उसकी पूर्णतम अभिव्यक्ति नहीं हो सकती । इसीलिए कविता बढ़ते-बढ़ते डायरी, डायरी बढ़ते-बढ़ते निबंध, निबंध कहानी, कहानी उपन्यास बनते चले जाते है, फिर भी कुछ अनभिव्यक्त रह ही जाता है। इसी रचनात्मक पूर्णता की तलाश में कवि फैटेसी की शैली में प्रवेश कर जाता है जहाँ अनुभव, दृश्य, विचार आदि परस्पर उलझे और अनियत क्रम में आते जाते हैं।

 

जन-जन का चेहरा एक पाठ का सारांश

यहाँ प्रस्तुत कविता मुक्तिबोध की अपेक्षाकृत सरल शिल्प की कविता है। इसमें जटिल विंबात मकता की उपस्थिति कम है। हालाँकि अभिधात्मक होते हुए भी अपनी भावप्रवणता के कारण यह कविता पठनीय तथा अर्थसम्पन्न हो जाती है। इस कविता में कवि की संवेदना और दृष्टि वैश्विक और सार्वभौम दिखाई पड़ती है। कवि पीड़ित तथा संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तुत करता है। वह कहता है कि शोषित और उत्पीड़ित जन और सामूहिकताएँ चाहे जिस देश या भौगोलिक इकाई में रहती हों, उनकी पीड़ा और उनके संघर्ष एक ही जैसे हैं। उनके चेहरे पर पड़ी वेदना की झुर्रियाँ एक ही जैसी हैं। वह नदियों को प्रतीक के रूप में सामने रखते हुए उनकी वेदना में एकसूत्रता देखता है। नदियों की वेदना का कारण जन-जन का शोषण तथा उत्पीड़न ही है, जो हर देश की सभ्यता के भीतर से वेदना के गीत गाती सी प्रतीत होती हैं। यह सामान्य बोध है कि दुनिया की लगभग सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। अर्थात् नदियाँ मनुष्यों के संघर्ष की साक्षी रही हैं। लेकिन वे प्रभु वर्ग द्वारा आम जनता के उत्पीड़न और शोषण की गवाह भी हैं और यही उनकी वेदना का कारण है। पृथ्वी के प्रसार को अन्याय और शोषण के बल पर ताकतवर बने वर्गों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है। कवि ने उन्हें शोषण की काली छायाएँ फैलाने वाले काले पहाड़ पर स्थित काले दुर्ग में रहने वाला जनशोषक शत्रु कहा है। यहाँ कवि वस्तुतः अन्याय और शोषण को एक भयावह अंधकार के रूप में मानवीकृत करता है। शोषक वर्ग समाज में उत्पादन प्रक्रिया पर काबिज है। वह चरित्र से सर्वहारा का भक्षक है। उसकी आत्मा कलुषित है। वह अपनी प्रतिष्ठा सर्वहारा के शोषण पर निर्मित और विकसित करता रहता है। एशिया, यूरोप, अमरीका आदि विभिन्न वासस्थानों पर रहने के बावजूद अपनी-अपनी भौगोलिक और ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद दुनिया का हर उत्पीड़ित एक ही है। भारत के उत्पीडित वर्ग की पीड़ा दुनिया के अन्य देशों की पीड़ा के समान ही है और इन्हीं अर्थों में हर देश में हिंदुस्तान ही मौजूद है। उत्पीड़न की यह वैश्विक उपस्थिति ही भावनात्मक स्तर पर उत्पीडित वर्ग के अंदर एक वैश्विक वर्ग चेतना पैदा करती है। यह वर्ग चेतना उन्हें प्रतिरोध का संबल प्रदान करती है। प्रतिरोध की ज्वाला पीड़ित जन-जन के मस्तक की महिमा तथा अंतर की ऊष्मा से उठती है। वह शोषण और अन्याय के खिलाफ एक रक्तक्रांति का भाव लेकर निकलती है। कवि के अनुसार जनता दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत है और अपने कर्म और श्रम से न्याय, शांति, बंधुत्व की दिशा में प्रयासरत है। कवि इस जनता में एक अंतर्वर्ती एकता देखता है और इस एकता को कविता का कथ्य बनाकर संघर्षकारी संकल्प में प्रेरणा और उत्साह का संचार करता है।

 

जन-जन का चेहरा एक Subjective Question

 

Q.1. ‘जन-जन का चेहरा एक से कवि का क्या तात्पर्य मैं है ?

उत्तर – ‘जन-जन का चेहरा एक’ से कवि का तात्पर्य है कि शोषित और उत्पीडित जन और सामूहिकताएँ चाहे जिस देश या भौगोलिक इकाई में रहती हों, उनकी पीड़ा और उनके संघर्ष एक ही जैसे हैं।

 

Q.2. बंधी हुई मुट्टियों का क्या लक्ष्य है ?

उत्तर – बंधी हुई मुट्ठियों का लक्ष्य हैं अन्याय और शोषण के संपूर्ण रूप का संगठित एवं सामूहिक विरोध करना।

 

Q.3. कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है ? सितारे का इशारा किस ओर है ?

उत्तर – कवि ने सितारे को भयानक इसलिए कहा है कि वह शोषक और उत्पीड़क सत्ता वर्ग, चाहे वह पृथ्वी के किसी हिस्से में रहता हो, के खिलाफ एक संगठित क्रांति का प्रतीक है जो उस शोषक तंत्र में भय का संचार करने में सक्षम है। सितारे का इशारा मार्क्सवादी क्रांति की ओर है।

 

Q. 4. नदियों की वेदना का क्या कारण है ?

उत्तर – नदियों की वेदना का कारण जन-जन का शोषण तथा उत्पीड़न ही है, जो हर देश की सभ्यता के भीतर से वेदना के गीत गाती सी प्रतीत होती है। यह सामान्य बोध है कि दुनिया की लगभग सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। अर्थात् नदियाँ मनुष्यों के संघर्ष की साक्षी रही हैं। लेकिन वे प्रभु वर्ग द्वारा आम जनता के उत्पीड़न और शोषण की गंवाह भी हैं और यही उनकी वेदना का कारण है।

 

Q.5 अर्थ स्पष्ट करें–

(क) आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार

चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक,   जन-जन का मित्र एक

उत्तर – कवि मुक्तिबोध ने उक्त पंक्तियों में मार्क्सवादी क्रांति के प्रतीक लाल रंग को आशा की किरणों के रूप में प्रस्तुत किया है। वह रूसी क्रांति को एक आदर्श क्रांति के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए कहता है कि आज के अन्याय और शोषण के खिलाफ यही लाल किरणों रूपी वैचारिक चेतना ही मित्र और पथप्रदर्शक के रूप में खड़ी है। दुनिया के हर पीड़ित जन की मित्र यही मार्क्सवादी विचारधारा और उसकी जन्मभूमि अर्थात् रूस है।

 

(ख) एशिया के, यूरोप के, अमरीका के भिन्न-भिन्न वास स्थान:

भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद,                सभी और हिन्दुस्तान, सभी ओर हिन्दुस्तान।

उत्तर – कवि ने अत्यंत स्पष्ट शब्दों में शोषण और उत्पीड़न झेल रहे भारतीय जनमानस को विश्व भर के जनमानस की वेदना से जोड़ दिया है। वह मानता है कि एशिया, यूरोप, अमेरिका आदि विभिन्न वासस्थानों पर रहने के बावजूद, अपनी-अपनी भौगोलिक और ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद दुनिया का हर उत्पीड़ित एक ही है। भारत के उत्पीड़ित वर्ग की पीड़ा दुनिया के अन्य देशों के उत्पीड़ित वर्गों की पीड़ा के समान ही है और इन्हीं अर्थों में हर देश में हिंदुस्तान ही मौजूद है। उत्पीड़न की यह वैश्विक उपस्थिति ही भावनात्मक स्तर पर उत्पीड़ित वर्ग के अंदर एक वैश्विक वर्ग चेतना पैदा करती है।

 

Q.6. ‘दानव दुरात्मा’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – ‘दानव दुरात्मा से आशय उस वर्ग से है जो समाज में उत्पादन प्रक्रिया पर काबिज है तथा समाज का प्रभु वर्ग बना बैठा है। वह चरित्र से सर्वहारा का भक्षक है। उसकी आत्मा कलुषित है। अर्थात् वह अपनी प्रतिष्ठा सर्वहारा के शोषण पर निर्मित और विकसित करता रहता है।

 

Q. 7. ज्वाला कहाँ से उठती है? कवि ने उसे ‘अतिक्रुद्ध’ क्यों कहा है ?

उत्तर – ज्वाला पीड़ित जन जन के मस्तक की महिमा तथा अंतर की ऊष्मा से उठती है। चूँकि वह शोषण और अन्याय के खिलाफ एक रक्तक्रांति का भाव लेकर निकलती है, अतः कवि ने उसे ‘अतिक्रुद्ध’ कहा है।

 

Q. 8. समूची दुनिया में जन-जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?

उत्तर – समूची दुनिया दो वर्गों में वेंटी दिखाई दे रही है अमीर वर्ग और गरीब वर्ग: पूंजीपति वर्ग और सर्वहारा वर्ग: शोषक वर्ग और शोषित वर्ग; दोनों के हित अलग-अलग हैं। शोषक वर्ग के पास शोषण का एक घोर खड्ग है शोषित वर्ग के पास उसके विरोध के लिए एकमात्र अस्त्र है उनकी एकता। अतः इन दो विरोधी वर्गीय हितों के चलते ही जन-जन का युद्ध दुनिया भर में चल रहा है।

 

Q. 9. कविता का केन्द्रीय विषय क्या है?

उत्तर – कविता का केन्द्रीय विषय है अन्याय और शोषण के वैश्विक चरित्र के खिलाफ प्रतिरोध और क्रांति की वैश्विक विचारधारात्मक और भावनात्मक एकसूत्रता का विधान करना। क्योंकि बिना संगठित प्रयास के और बिना विश्वदृष्टि के मानवता के खिलाफ इस अत्याचारी सत्तावर्ग का प्रतिकार नहीं किया जा सकता।

 

Q.10. ‘प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – ‘प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा’ से तात्पर्य यह है कि मार्क्सवादी विचारधारा शोषित वर्गों के एकजुट होने के लिए एक रागात्मक संकेत है, क्योंकि वह भावना के स्तर पर भी सर्वहारा वर्ग को एकसूत्र होने की प्रस्तावना करती है। इसी एकसूत्र तथा संगठित वर्ग के माध्यम से ही प्रतिरोध के लिए आवश्यक क्रोध की भावभूमि तैयार की सकेगी। यह दुधारा इसलिए है क्योंकि एक तरफ यह क्रोध की जमीन उन्हें अपने व्यक्तिगत शोषण के खिलाफ आवाज उठाने को उर्जस्थित करेगी, तो दूसरी तरफ प्रत्येक व्यक्ति का यह उर्जस्थित मन एक वैश्विक प्रतिरोधी परिवेश तैयार करने में भी सहायक होगा।

 

Q. 11. पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है?

उत्तर – पृथ्वी के प्रसार को अन्याय और शोषण के बल पर ताकतवर बने वर्गों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है। कवि ने उन्हें शोषण की काली छायाएँ फैलाने वाले काले पहाड़ पर स्थित काले दुर्ग में रहने वाला जन शोषक शत्रु कहा है। यहाँ कवि वस्तुतः अन्याय और शोषण को एक भयावह अंधकार के रूप में मानवीकृत करता है।

 

Q.12. कविता की पंक्ति-पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए भावार्थ लिखिए।

उत्तर – इस कविता में कवि की संवेदना और दृष्टि वैश्विक और सार्वभौम दिखाई पड़ती है। कवि पीड़ित तथा संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तुत करता है। वह कहता है कि शोषित और उत्पीड़ित जन और सामूहिकताएँ चाहे जिस देश या भौगोलिक इकाई में रहती हों, उनकी पीड़ा और उनके संघर्ष एक ही जैसे हैं। उनके चेहरे पर पड़ी वेदना की झुर्रियाँ एक ही जैसी हैं। वह नदियों को प्रतीक के रूप में सामने रखते हुए उनकी वेदना में एकसूत्रता देखता है। नदियों की वेदना का कारण जन-जन का शोषण तथा उत्पीड़न ही है, जो हर देश की सभ्यता के भीतर से वेदना के गीत गाती सी प्रतीत होती हैं। यह सामान्य बोध है कि दुनिया की लगभग सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। अर्थात् नदियाँ मनुष्यों के संघर्ष की साक्षी रही हैं। लेकिन वे प्रभु वर्ग द्वारा आम जनता के उत्पीड़न और शोषण की गवाह भी हैं और यही उनकी वेदना का कारण है। पृथ्वी के प्रसार को अन्याय और शोषण के बल पर ताकतवर बने वर्गों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है। कवि ने उन्हें शोषण की काली छायाएँ फैलाने वाले काले पहाड़ पर स्थित काले दुर्ग में रहने वाला जन शोषक शत्रु कहा है। यहाँ कवि वस्तुतः अन्याय और शोषण को एक भयावह अंधकार के रूप में मानवीकृत करता है। शोषक वर्ग समाज में उत्पादन प्रक्रिया पर काबिज है। वह चरित्र से सर्वहारा का भक्षक है। उसकी आत्मा कलुषित है। वह अपनी प्रतिष्ठा सर्वहारा के शोषण पर निर्मित और विकसित करता रहता है। एशिया, यूरोप, अमेरिका आदि विभिन्न वासस्थानों पर रहने के बावजूद, अपनी-अपनी भौगोलिक और ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद दुनिया का हर उत्पीड़ित एक ही है। भारत के उत्पीड़ित वर्ग की पीड़ा दुनिया के अन्य देशों की पीड़ा के समान ही है और इन्हीं अर्थों में हर देश में हिंदुस्तान ही मौजूद है। उत्पीड़न की यह वैश्विक उपस्थिति ही भावनात्मक स्तर पर उत्पीड़ित वर्ग के अंदर एक वैश्विक वर्ग चेतना पैदा करती है। यह वर्ग चेतना उन्हें प्रतिरोध का संबल प्रदान करती है। प्रतिरोध की ज्वाला पीड़ित जन-जन के मस्तक की महिमा तथा अंतर की ऊष्मा से उठती है। वह शोषण और अन्याय के खिलाफ एक रक्तक्रांति का भाल लेकर निकलती है। कवि के अनुसार जनता दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत है और अपने कर्म और श्रम से न्याय, शांति, बंधुत्व की दिशा में प्रयासरत है। कवि इस जनता में एक अंतर्वर्ती एकता देखता है और इस एकता को कविता का कथ्य बनाकर संघर्षकारी संकल्प में प्रेरणा और उत्साह का संचार करता है।

 

जन-जन का चेहरा एक Objective Question

 

Q.1. गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ था?

(क) 13 नवंबर, 1915

(ख) 13 नवंबर, 1916

(ग) 13 नवंबर, 1917

(घ) 13 नवंबर, 1918

उतर – (ग) 13 नवंबर, 1917

 

Q.2. गजानन माधव मुक्तिबोध का निधन कब हुआ?

(क) 11 सितंबर, 1964

(ख) 11 सितंबर, 1965

(ग) 11 सितंबर, 1966

(घ) 11 सितंबर, 1967

उतर – (क) 11 सितंबर, 1964

 

Q.3. गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म कहाँ हुआ था?

(क) भोपाल, मध्य प्रदेश

(ख) इन्दौर, मध्य प्रदेश

(ग) ग्वालियर, मध्य प्रदेश

(घ) जबलपुर, मध्य प्रदेश

उतर – (ग) ग्वालियर, मध्य प्रदेश

 

Q.4. मुक्तिबोध ने किस पत्रिका का संपादन किया था?

(क) नया खून 

(ख) नया पथ 

(ग) नयी राह 

(घ) नई दिशा

उतर -(ख) नया पथ 

 

Q.5. मुक्तिबोध की विचारधारा क्या थी?

(क) मार्क्सवाद 

(ख) समाजवाद 

(ग) गांधीवाद्

(घ) फासीवाद

उतर – (क) मार्क्सवाद 

 

Q.6. अपनी किस कृति के कारण मुक्तिबोध प्रसिद्ध हुए?

(क) सतह से उठता आदमी 

(ख) भूरी-भूरी खाक धूल

(ग) चाँद का मुँह टेढ़ा है

(घ) विपात्र

उतर – (ग) चाँद का मुँह टेढ़ा है

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page

error: Content is protected !!