पद |
पद कवि के बारे में
तुलसी मध्यकालीन भक्ति काव्य आंदोलन के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्हें हिन्दी का जातीय महाकवि कहा जाता है। राम के प्रति दास्य भाव की अनन्यता के बीच उन्होंने तत्कालीन समाजव्यवस्था, राजनीति तथा अर्थव्यवस्था का जो यथार्थपरक चित्र अपनी रचनाओं में किया है, वह अन्यतम है। कुल 12 ज्ञात रचनाओं में से रामचरित्रमानस को भारतीय समाज का इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता है। क्योंकि कवि ने भक्ति के बहाने एक गहरी सामाजिक अर्न्तदृष्टि का परिचय दिया है। उनकी काव्य-भाषा मुख्यतः अवधी रही है जिसमें देशज, विदेशज,तत्सम, तद्भव आदि शब्दों का काव्योचित मेल रहा है। ब्रजभाषा में भी उन्होंने समान अधिकार के साथ काव्य रचना की है। विनयपत्रिका इसका प्रमाण है।
पद पाठ का सारांश
यहाँ प्रस्तुत पदों में वे राम के प्रति अपनी भक्ति भावना प्रकट करने के क्रम में सामाजिक यथार्थ का भी निरूपण करते चले हैं। तुलसी अपने आराध्य राम को स्वामी तथा अपने को दास में प्रस्तुत करते हैं। प्रथम पद में यह दास्य भावना वात्सल्य की सीमाओं को भी स्पर्श करती दिखाई पड़ती है। वे सीता को माता के रूप में संबोधित करते हुए अपनी दीन-दशा का विवरण आराध्य राम से देने को कहते हैं, ताकि उन पर कृपालु राम की कृपादृष्टि पड़ सके। उन्होंने सीता को माँ के रूप में संबोधित करते हुए अपना परिचय दीन अर्थात् गरीब, अंगहीन, दुर्बल, मलिन और पापी के रूप में दिया है। वे दीनता की पराकाष्ठा तक अपने को ले जाते हुए यह भी कहते हैं कि वे अपने प्रभु का नाम लेकर अपना पेट पालन कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि तुलसीदास कथावाचन द्वारा अपनी आजीविका चलाते थे। भक्ति का यह वात्सल्यमयी रूप तुलसी की विशिष्टता है, जहाँ पर कवि अपने आराध्य से देश, काल और स्थान की दूरी के बावजूद भावनात्मक स्तर पर एकमेक हो पाता है। दूसरे पद में वे अपने आराध्य राम के प्रति विनय भाव की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि कलियुग का यह समय अत्यंत भीषण, बुरा तथा असह्य है। इस समय सबकुछ बुरी तरह दुर्गतिग्रस्त हो रहा है। इस समय जो नीच प्रवृत्ति के लोग हैं, उनका मन इस हद तक बढ़ा हुआ है कि मानो बाकी समाज के लिए कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा हो गई है। इस भयानक और अस्त व्यस्त काल में दुष्टों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है और सत् स्वभाव के व्यक्तियों के लिए यह स्थिति और कष्टप्रद हो गई है। तुलसी के पहले पद में भक्त की व्यक्तिनिष्ठता है तो दूसरे में उन्हीं तुलसी की भक्ति भावना सज्जनों तथा समाज की चिंता से जुड़कर प्रकट होती है।
पद Subjective Questions Bihar Board
Q.1. ‘कंबहुक अंब अवसर पाई।’ यहाँ ‘अंब’ संबोधन किसके लिए है? इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें। या, ‘तुलसीदास ने ‘अन्य’ कहकर किसको संबोधित किया है और क्यों ?
उत्तर – यहाँ ‘अंब’ संबोधन सीता माता के लिए है। तुलसीदास यहाँ प्रभु श्रीराम के प्रति अपना विनय सीता माता के माध्यम से प्रकट करते हैं। सीता को मातृवत और स्वयं को पुत्र मानने के कारण वे सीता के लिए ‘अंब’ का संबोधन देते हैं।
Q.2. प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है, लिखिए।
उत्तर – प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय दीन अर्थात् गरीब, अंगहीन, दुर्बल, मलिन और पापी के रूप में दिया है। वे दीनता की पराकाष्ठा तक अपने को ले जाते हुए यह भी कहते हैं कि वे अपने प्रभु राम का नाम लेकर अपना पेट पालन कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि तुलसी दास कथावाचन द्वारा अपनी आजीविका चलाते थे।
Q.3. अर्थ स्पष्ट करें–
(क) नाम से भरे उदर एक प्रभु-दासी दास कहाइ ।
उत्तर- तुलसीदास सीता माँ को मूर्तिमान मानकर अनुनय के पद गाते हुए कहते हैं कि हे प्रभुदासी अर्थात् सीता माँ यह दास अर्थात् तुलसीदास प्रभु का नाम लेकर अपना पेट पालता है। अर्थात् प्रभु कथावाचन द्वारा वे अपनी आजीविका चला रहे हैं।
(ख) कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुमति कुसाजु । नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में खाजु|
उत्तर – यहाँ तुलसीदास अपने आराध्य राम के प्रति विनय भाव की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि कलयुग का यह समय अत्यंत भीषण, बुरा तथा असह्य है। इस समय सबकुछ बुरी तरह दुर्गतिग्रस्त हो रहा है। इस समय जो नीच प्रवृत्ति के लोग हैं, उनका मन इस हद तक बढ़ा हुआ है मानो बाकी समाज के लिए कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा हो गई है। अर्थात् इस भयानक और अस्त-व्यस्त काल में दुष्टों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है और सत् स्वभाव के व्यक्तियों के लिए यह स्थिति और कष्टप्रद हो गई है।
(ग) पेट भरि तुलसिहि जैवाइय भगति-सुधा सुनाजु|
उत्तर – तुलसीदास कहते हैं कि इस भयावह और दारुण कलिकाल में इस विपन्न जन्म भर के भूखे दास को हे प्रभु अपनी भक्ति रूपी अमृत का सुंदरतम खाद्य खिलाकर तृप्त् कर दीजिए।
Q.4. तुलसी सीता से कैसी सहायता मांगते हैं?
उत्तर – तुलसी सीता को माँ की तरह संबोधित करते हुए कहते हैं कि वे तुलसी की दैन्यावस्था का जिक्र प्रभु श्रीराम से कर दें, ताकि उन्हें यह भरोसा हो सके कि तुलसी की दशा वास्तव में दयनीय है। और इस प्रकार उनकी कृपादृष्टि तुलसी पर बरस पड़े।
Q.5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं?
उत्तर – तुलसी यहाँ सामान्य जनजीवन की व्यावहारिकता को अपनी दास्य भक्ति की पराकाष्ठा के साथ सम्मिलित कर लेते हैं। कोई भी शिशु अपनी माँ का प्रिय होता है तथा माँ के सम्मुख अपनी किसी इच्छा को प्रकट करने में सहजता महसूस करता है। इसलिए वह पिता की कृपा चाहने के लिए माँ से अनुनय करता है। ठीक इसी प्रकार तुलसीदास भी अपनी भावना को माँ यानि सीता जी के माध्यम से पिता यानि प्रभु राम के पास निवेदित करना चाहते हैं।
Q.6. राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है ?
उत्तर – तुलसी के इस भरोसे का कारण यह है कि यदि माँ सीता तुलसी की दीन दशा का वर्णन अपने मुख से प्रभु राम से करेंगी तो चूँकि प्रभु राम कृपालु हैं, अतः उनकी कृपादृष्टि पड़ने से तुलसी की बिगड़ी बन जाएगी।
Q.7. दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है, लिखिए।
उत्तर – दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय देते हुए कहा है कि वे (तुलसीदास) आश्रयहीन, कलिकाल के भयावह प्रकोप से पीड़ित, जन्म भर से क्षुधित अत्यंत दीनहीन हैं।
Q.8. दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है ?
उत्तर – दोनों पदों में भक्ति रस की व्यंजना हुई है। कुछ आचार्य भक्ति रस को करुण रस का ही एक अंग मानते हैं।
Q.9. तुलसी के हृदय में किसका डर है ?
उत्तर – तुलसी के हृदय में इस बात का डर है कि इस भयावह और दारुण कलिकाल में जबकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का मनोबल बढ़ता ही जा रहा है, कहीं साधु और सुहृद समाज का लोप ही न हो जाय।
Q.10. राम स्वभाव से कैसे हैं, पठित पदों के आधार पर बताइए।
उत्तर – राम स्वभाव से कृपालु, दीन-दारिद्रय का दलन करने वाले तथा गरीबों का कल्याण करने वाले हैं।
Q.11. तुलसी को किस वस्तु की भूख है ?
उत्तर – तुलसी को राम की भक्ति रूपी अमृत के पान की भूख है।
Q.12. पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर – तुलसी की भक्ति दास्य भाव की है। तुलसी अपने आराध्य राम को स्वामी तथा अपने को दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं। प्रथम पद में यह दास्य भावना वात्सल्य की सीमाओं को भी स्पर्श करती दिखाई पड़ती है। वे सीता को माता के रूप संबोधित करते हुए अपनी दीन दशा का विवरण आराध्य राम से देने को कहते हैं, ताकि उन पर कृपालु राम की कृपादृष्टि पड़ सके। दूसरे पद में भी वे राम की भक्ति के प्रति अनन्य भाव से समर्पण करते हैं। उनका मानना है कि सिवाय राम के उनका कोई आश्रय नहीं है। इस भयानक कलिकाल में एक राम की भक्ति रूपी अमृत से ही उनका तथा सुहृद समाज का कल्याण हो सकता है।
Q. 13. ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु । यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यहाँ ‘और’ का अर्थ है दूसरा या अन्य आश्रय तुलसी राम के प्रति विनीत भाव से कहते हैं कि राम के सामने गिड़गिड़ाने और अनुनय करने से ही कल्याण संभव है, क्योंकि उनके अलावा कोई दूसरा या अन्य आश्रय नहीं है।
Q.14. दूसरे पद में तुलसी ने ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग किया है ?
उत्तर – तुलसी ने दीनता पद का प्रयोग स्वयं के संदर्भ में तथा दरिद्रता का प्रयोग स्वयं सहित पूरे समाज की दरिद्रता के संदर्भ में किया है।
Q.15 प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए–
उत्तर – तुलसी की भक्ति दास्य भाव की है। तुलसी अपने आराध्य राम को स्वामी तथा अपने को दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं। प्रथम पद में यह दास्य भावना वात्सल्य की सीमाओं को भी स्पर्श करती दिखाई पड़ती है। वे सीता को माता के रूप संबोधित करते हुए अपनी दीन-दशा का विवरण आराध्य राम से देने को कहते हैं, ताकि उन पर कृपालु राम की कृपादृष्टि पड़ सके। उन्होंने माता सीता से प्रभु राम के सम्मुख अपना परिचय दीन अर्थात् गरीब, अंगहीन, दुर्बल, मलिन और पापी के रूप में दिया है। वे दीनता की पराकाष्ठा तक अपने को ले जाते हुए यह भी कहते हैं कि वे अपने प्रभु राम का नाम लेकर अपना पेट पालन कर रहे हैं। उनको यह पूरा भरोसा है कि यदि माँ सीता तुलसी की दीन दशा का वर्णन अपने मुख से प्रभु राम से करेंगी तो चूँकि प्रभु राम कृपालु हैं, अतः उनकी कृपादृष्टि पड़ने से तुलसी की बिगड़ी बन जाएगी।
पद Objective Questions Bihar Board
Q.1. तुलसीदास का जन्म कब हुआ?
(क) 1540
(ख) 1541
(ग) 1542
(घ) 1543
उतर -(घ) 1543
Q.2. तुलसीदास का निधन कब हुआ?
(क) 1622
(ख) 1623
(ग) 1624
(घ) 1625
उतर -(ख) 1623
Q.3. तुलसीदास का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) काशी, उत्तर प्रदेश
(ख) झांसी, उत्तर प्रदेश
(ग) बाँदा, उत्तर प्रदेश
(घ) प्रयाग, उत्तर प्रदेश
उतर -(ग) बाँदा, उत्तर प्रदेश
Q.4. तुलसीदास का मूल नाम क्या था?
(क) रामबोला
(ख) रामदास
(ग) रामरल
(घ) रामजन्म
उतर -(क) रामबोला
Q.5. तुलसीदास की पत्नी का नाम क्या था?
(क) रत्नावती
(ख) रत्नावली
(ग) रत्नमणि
(घ) रत्नदेवी
उत्तर -(क) रत्नावती
Q.6. तुलसीदास के दीक्षा गुरु कौन थे?
(क) नरहरि दास
(ख) नरधरि राम
(ग) नरहरि देव
(घ) नरहरि
उत्तर -(क) नरहरि दास
Q.7. तुलसीदास की शिक्षा कहाँ हुई थी?
(क) काशी
(ख) बनारस
(ग) विंध्याचल
(घ) मगहर
उत्तर -(क) काशी
Q.8. तुलसीदास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना कौन है ?
(क) पार्वती मंगल
(ख) बरवै रामायण
(ग) कवितावली
(घ) रामचरितमानस
उत्तर -(घ) रामचरितमानस
Q.9. रामचरित्रमानस की रचना का आरंभ कब हुआ?
(क) 1571
(ख) 1572
(ग) 1573
(घ) 1574
उत्तर -(घ) 1574
Q.10. विनयपत्रिका’ के रचनाकार कौन थे?
(क) तुलसीदास
(ख) सूरदास
(ग) जायसी
(घ) कबीर
उत्तर – (क) तुलसीदास