प्यारे नन्हें बेटे को |
प्यारे नन्हें बेटे को कवि के बारे में
विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी में बीसवीं शती के सातवें आठवें दशक में कविता और कथा के नये तेवर तथा मुहावरे के साथ सामने आये। उनकी रचनाएँ बेहद साधारण जीवन-संदर्भो को एक असाधारण व्यापकता और गहराई प्रदान करती हैं। वे अपनी रचनाओं को किसी अस्वाभाविक, यलसाध्य और हिरोईक्स से परे इतने स्वाभाविक, निरायास और सामान्य रूप से सृजित करते हैं कि वह पाठक को अपने से इतर लगती ही नहीं। अनुभूतियों की ईमानदारी तथा अभिव्यक्ति में भी उतनी ही सहजता पाठक को रचना से अद्भुत ढंग से ‘इन्वॉल्व’ कर देती है। यह उपलब्धि हिन्दी के कम ही साहित्यकारों को मिल पाई है।
प्यारे नन्हें बेटे को पाठ का सारांश
यहाँ प्रस्तुत कविता एक गृहस्थ पिता द्वारा अपनी पुत्री से घर में लोहे की विभिन्न रूपों में मौजूदगी की पहचान कराने के क्रीड़ा-कौतुक के बहाने एक गहन सभ्यतागत समीक्षा की मिसाल बन जाती है। लोहा यहाँ एक धातु से ज्यादा गहरे जीवन संदर्भो को प्रतिबिंबित करता है। वह ठोस होकर भी हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। वह कभी पुरुष के लिए उत्पादन की क्रिया में सहायक है तो कभी स्त्री के लिए गृहस्थी की गाड़ी उठाने में सहायक है, कभी उसी स्त्री के लिए दमन और उत्पीड़न का हथियार भी। इसकी खोज इसलिए की जा रही है कि कवि के नन्हें बच्चे जीवन में इसकी मौजूदगी तथा इसकी प्रतीकार्थता को समझ पायें। पिता यदि मेहनतकश किसान की तरह कृषि सामग्रियों में लोहे की मौजूदगी बताते हैं तो दरअसल वह हर किसान के जीवन के इस अनिवार्य हिस्से के प्रति उनके मन में रिश्ते और सम्मान का भाव संप्रेषित करना चाहते हैं। माता यदि घर के चूल्हे-चौके से जुड़ी चीजों में लोहा देखती है, पुरुषप्रधान सामाजिक संरचना में लोहा देखती है तो वह भी हर माता या गृहिणी के जीवनानुभव का हिस्सा है। विटिया की बालसुलभ जिज्ञासाएँ हर बिटिया की जिज्ञासाएँ हैं। इस तरह जीवन अनुभव को उसकी व्यापकता में व्यंजित करने के कारण यह कविता एक बाह्य सापेक्ष आंतरिक संसार की सृष्टि करती है।
प्यारे नन्हें बेटे को Subjective Question
Q.1. ‘बिटिया’ से क्या सवाल किया गया है ?
उत्तर – बिटिया से सवाल किया गया है कि बतलाओ, आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है।
Q.2. ‘बिटिया’ कहाँ-कहाँ लोहा पहचानती है ?
उत्तर – बिटिया चिमटा, करकुल, सिगड़ी, समसी, दरवाजे की साँकल कब्जे, दरवाजे में धंसे खीले, लकड़ी के खंभों पर बंधे हुए तार, सेफ्टी पिन, साइकिल में लोहा पहचानती है।
Q.3. कवि लोहे की पहचान किस रूप में कराते हैं ? यही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती हैं ?
उत्तर – कवि लोहे की पहचान फावड़ा, कुदाली, टंगिया, बसुला, खुरपी, बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा, बैठों के गले में कांसे की घंटी के अंदर लोहे की गोली आदि ग्रामीण जीवन में अंतर्भुक्त श्रम और कृषि से जुड़ी सामग्रियों के रूप में कराते हैं। यही पहचान एक ग्रामीण गृहस्थिन की जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए आवश्यक छोड़े की सामग्रियों मसलन बाल्टी, कुएँ में लगी लोहेकी घिरी, छत्ते की काड़ी-डंडी और घमेला, हँसिया, चाकू तथा मिठाई बलाडिला के जगह-जगह मौजूद लोहे की टीले के रूप में कराती है।
Q. 4. लोहा क्या है? इसकी खोज क्यों की जा रही हैं?
उत्तर – लोहा यहाँ एक धातु से ज्यादा गहरे जीवन संदर्भों को प्रतिबिंबित करता है। वह ठोस होकर भी हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। वह कभी पुरुष के लिए उत्पादन की क्रिया लिए दमन और उत्पीड़न का हथियार भी इसकी खोज इसलिए की जा रही है कि कवि के नन्हें बच्चे जीवन में इसकी मौजूदगी तथा इसकी प्रतीकार्यता को समझ पाएँ।
Q. 5. इस घटना से उस घटना तक यहाँ किन घटनाओं की चर्चा है?
उत्तर – ‘इस घटना’ से तात्पर्य यह है कि जब कवि नन्हें बेटे को कंधे पर बैठा कर कौतुकवश नन्हीं विटिया से पूछता है कि आसपास कहाँ कहाँ लोहा है तो विटिया भी उत्ससित होकर अपनी उम्र के अनुसार जानी-पहचानी जा सकने वाली चीजों में लोहे की मौजूदगी बताती है। पिता उसे याद दिलाना चाहते हैं कि मेहनतकश पुरुष के जीवन में सोहा है, माता बताना चाहती है कि स्त्री का जीवन छोहों से घिरा है, घर के चूल्हे-चौके की दुनिया से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक उस घटना से तात्पर्य कवि द्वारा उस अवस्था की कल्पना से है जब पुत्र वयस्क हो जाता है और पुत्री का भी विवाह हो जाता है। उम्र तथा तजुर्वे के उस पड़ाव पर पहुँचकर पुत्र तथा पुत्री दोनों के जीवन का यह सामान्य बोध बन जाय कि जीवन में लोहा कहाँ और किन रूपों, किन संदर्भों के साथ है।
Q.6. अर्थ स्पष्ट करें–
कि हर वो आदमी जो मेहनतकश लोहा है
हर वो औरत दबी सत्ताई बोझ उठाने वाली, लोहा |
उत्तर – कवि यहाँ लोहे को एक प्रतीकात्मक संदर्भ देते हुए कहता है कि एक गृहस्थ के लिए लोहा आर्थिक उपार्जन का माध्यम है, जिससे वह परिवार का भरण-पोषण करता है। इसी तरह स्त्री का जीवन लोहों से घिरा है, घर के चूल्हे-चौके की दुनिया से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक वह गृहस्थी का बोझ उठाती चलती है, साथ ही पुरुषवर्चस्ववादी समाज में नियमों, तकाजों और वर्जनाओं के अभेद लोहों से जूझती, भिड़ती और घायल होती चलती है।
Q. 7. कविता में लोहे की पहचान अपने आसपास में की गई है। विटिया, कवि और उनकी पली जिन रूपों में इसकी पहचान करते हैं, ये आपके मन में क्या प्रभाव उत्पन्न करते हैं? बताइए।
उत्तर – बिटिया लोहे की पहचान अपनी उम्र के हिसाब से करती है। वह बालसुलभ जिज्ञासाओं के चलते जो कुछ महसूस कर पाती है, वहीं लोहे की स्थिति को बता पाती है। जीवन के मीठे कड़वे अनुभवों से यह दूर है, अतः उसके लिए लोहे की पहचान एक कौतुहल भरा प्रश्न है। इसीलिए वह चिमटा, करकुल, सिगड़ी, दरवाजे की साँकल, कब्जे, दरवाजे में धंसे खीले, लकड़ी के खंभों पर बंधे हुए तार, सेफ्टी पिन, साइकिल में लोहा पहचानती है। पिता गृहस्थ की तरह आर्थिक उपार्जन के लिए कृषि कार्य में सहायक औजारों के रूप में लोहे की पहचान कराना चाहते हैं। इसीलिए वे फावड़ा, कुदाली, टॅगिया, वसुला, खुरपी, बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा, बैलों के गले में कांसे की घंटी के अंदर लोहे की गोली को पहचानते हैं। माँ गृहस्थिन है और एक औरत भी। वह गृहस्थी का बोझ उठाती चलती है, साथ ही पुरुषवर्चस्ववादी समाज में नियमों, तकाजों और वर्जनाओं के अभेद लोहों से जूझती, भिड़ती और घायल होती चलती है। इस तरह सभी पात्रों के लोहे संबंधी व्यक्तिगत अनुभव-संदर्भ लोहे को एक अनिवार्यता प्रदान करते हैं तथा हमारे मन में एक गहरी संवेदना पैदा कर जाते हैं।
Q. 8 मेहनतकश आदमी और दबी सतायी, बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का क्या आशय है ?
उत्तर – मेहनतकश आदमी और दबी सतायी, बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का आशय यह है कि व्यक्ति विशेष के जीवनानुभव किसी एक ही वस्तु के प्रति विभिन्न दृष्टियों और प्रतीकों को प्रस्तुत करने लगते हैं। एक परिवार में पति-पत्नी का सतत और अनिवार्य साहचर्य रहता है, बावजूद इसके पति के लिए लोहा कुछ अलग है, वहीं पत्नी के लिए अलग लोहा कहीं न कहीं उनकी अस्मिताबोध का परिचायक भी बन जाता है।
Q. 9. यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है, पर वह संसार बाह्य निरपेक्ष नहीं है । इसमें दृष्टि और संवेदना, जिजीविषा और आत्मविश्वास सम्मिलित हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर – निश्चित रूप से इस कविता में एक गृहस्थ परिवार के विभिन्न सदस्यों के माध्यम से लोहे की उपस्थिति के सवाल को सुलझाया गया है। पिता यदि मेहनतकश किसान की तरह कृषि सामग्रियों में लोहे की मौजूदगी बताते हैं तो वह हर किसान के जीवन का हिस्सा है। माता यदि घर के चूल्हे-चौके से जुड़ी चीजों में लोहा देखती हैं, पुरुषप्रधान सामाजिक संरचना में लोहा देखती हैं तो वह हर माता या गृहस्थी के जीवन का हिस्सा है। विटिया की बालसुलभ जिज्ञासाएँ हर विटिया की जिज्ञासाएँ हैं। इस तरह जीवनानुभव को उसकी व्यापकता में व्यंजित करने के कारण यह कविता एक बाह्य निरपेक्ष आंतरिक संसार की सृष्टि करती है।
Q.10. बिटिया को पिता ‘सिखलाते हैं तो माँ ‘समझाती है। ऐसा क्यों ?
उत्तर – बिटिया को पिता ‘सिखलाते हैं। पिता घर का संरक्षक और काफी हद तक स्वामी होता है। यहाँ ‘सिखलाने में एक संरक्षक और दिशा-निर्देशक की भूमिका ध्वनित होती है। माँ अपने गृहस्थ जीवन की अनुभूतियों को पुत्री से बताना चाहती है। पुत्री एक संतान के साथ एक स्त्री भी है जो कल को माँ की तरह ही गृहस्थिन बनेगी। अतः माँ एक सखी की तरह अपने सुख-दुख को साझा करने की तर्ज पर बिटिया को ‘समझाती’ है।
प्यारे नन्हें बेटे को Objective Question
1. विनोद कुमार शुक्ल का जन्म कब हुआ था?
(क) 1 जनवरी, 1937
(ख) 1 जनवरी, 1937
(ग) 3 जनवरी, 1937
(घ) 4 जनवरी, 1937
उतर -1 जनवरी, 1937
2. विनोद कुमार शुक्ल का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) रायपुर, छत्तीसगढ़
(ख) विलासपुर, छत्तीसगढ़
(ग) राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़
(घ) बस्तर, छत्तीसगढ़
उतर – राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़
3. विनोद कुमार शुक्ल को कौन-सा पुरस्कार मिला है?
(क) रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार
(ख) दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान
(ग) साहित्य अकादमी पुरस्कार
(घ) तीनों
उतर -तीनों
4. विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह कौन है ?
(क) सब कुछ होना बचा रहेगा
(ख) वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह
(ग) लगभग जय हिंद
(घ) अतिरिक्त नहीं
उतर -लगभग जय हिंद
5. विनोद कुमार शुक्ल का कौन उपन्यास सबसे ज्यादा चर्चित हुआ है?
(क) नौकर की कमीज
(ख) खिलेगा तो देखेंगे
(ग) दीवार में एक खिड़की रहती थी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उतर -नौकर की कमीज