हार-जीत |
हार-जीत कवि के बारे में
अशोक वाजपेयी एक कवि और साहित्यकार के रूप में हिंदी में अकविता के दौर के व्यक्तित्व हैं। उन्होंने अकविता में मौजूद अनास्थावादी और मोहभंग के भाव से संचालित दृष्टि को एक सकारात्मक सामाजिक उत्थान दिया था। परंतु आगे वे अपने जीवन तथा काव्य चेतना में वैयक्तिक मूल्यों के पक्षधर होते चले गये।
हार-जीत पाठ का सारांश
यहाँ प्रस्तुत कविता उनकी आरंभिक गद्य कविताओं से ली गई है उनके संकलन कहीं नहीं वहीं में संकलित है। गद्य कविता मूलतः गध का ही एक रूप है, लेकिन हिन्दी में यह ज्यादा पुरानी विधा नहीं है। गद्य कविता का जो बास्य कलेवर होता है, वह समसामयिक अनुभवों की विलक्षणता की त्वरित प्रतिक्रिया की तरह होता है। अर्थात् इसकी रूप संरचना का उत्स कवि के काव्यानुभव में होता है जो गधात्मक ही होता है। दैनंदिन जीवन के अनुभव से बोलचाल-बातचीत और सामान्य मनःचिंतन के रूप में उगा हुआ, विवरणधर्मी, युक्ति-तर्क के कारण घुमावदार, पेचीदा और चौरस सा शिल्प इस तरह की कविता में होता है। प्रस्तुत कविता में चूँकि युद्ध के समाजशास्त्रीय अध्ययन की तर्ज पर एक तार्किक बहस सी दिखाई पड़ती है, अतः इसके अनुषंग में यह कविता भी उपरोक्त दिए गये अभिलक्षणों की पुष्टि करती है। इस कविता में शासक वर्ग, राजनीति, युद्ध, इतिहास और आम आदमी को लेकर आधुनिक प्रसंगों में अनेक प्रश्न उठाये गये हैं। युद्ध के सार्वभौम अमानवीय चरित्र पर कवि कटाक्ष करते हुए कहता है कि इस तथाकथित विजयपर्व की धूमधाम में कई आम सैनिक, जो सत्ता में कोई दखल नहीं रखते, वे मारे दिए जाते हैं। उनका हिसाब-किताब न सत्ता देना चहती है और न ही जनता उनसे जानना चाहती है। कविता बर्बर और अमानवीय सत्ता चरित्र और उसके समानांतर राजनीतिक रूप से रीढ़विहीन नागरिक समाज, दोनों को प्रश्नांकित करती है। कवि ने इस तथाकथित जीत का उत्सव मना रहे राजनीतिक बोध से रहित नागरिकों पर कटाक्ष किया है। वे बताते हैं कि दरअस्ल जो नागरिक विजयपर्व मनाने में व्यस्त हैं उन्हें तो पता ही नहीं है कि इस युद्ध के शुरू होने की वजहें क्या थीं? शत्रु कौन था तथा किस युद्ध के लिए उनके शासक और सेना गये हुए थे? वे एक उत्सवधर्मी लिजलिजी मानसिकता से ग्रस्त हैं। यह विजय निश्चित रूप से नागरिकों की नहीं है। यह शासकवर्ग की विजय है जो सत्ता और सैनिक का प्रयोग सिर्फ अपनी राज्यलिप्सा और शक्तिलिप्सा को पूरा करने के लिए प्रयुक्त करता है। नागरिक इस विजय या पराजय से निरपेक्ष, राजनीतिक रूप से सोये हुए हैं। अतः किसी भी प्रकार के युद्ध में जीतती या हारती सत्ताएँ हैं। आम आदमी उसमें सिर्फ कुरबान किया जाता है। वस्तुतः युद्ध जीतने वाले जीतकर नहीं बल्कि व्यापक अर्थों में मानवता की हत्या करके और इस तरह से हार कर लौटे हैं।
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Q. 1. उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं?
उत्तर – उत्सव नागरिक मना रहे है, क्योंकि उन्हें बताया गया है कि उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं।
Q.2. नागरिक क्यों व्यस्त हैं ? क्या उनकी व्यस्तता जायज है?
उत्तर – नागरिक विजय का उत्सव मनाने में व्यस्त हैं। उनकी व्यस्तता नितांत नाजायज है क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि इस विजय का यथार्थ क्या है? उन्हें यह नहीं पता कि युद्ध किस बात को लेकर या और उनकी सेना और शासक किस युद्ध पर गये थे? वे कुछ नहीं जानना चाहते। बस रीढ़विहीन नागरिक की तरह उत्सव मनाने में व्यस्त हैं।
Q.3. ‘किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की ? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है ? यह विजय किनकी है? आप क्या सोचते हैं? बताएं।
उत्तर – कवि ने यह प्रश्न इसलिए खड़ा किया है कि जो नागरिक विजयपर्व मनाने में व्यस्त हैं, उन्हें तो पता ही नहीं है कि इस युद्ध के शुरू होने की वजहें क्या थीं? शत्रु कौन था तथा किस युद्ध के लिए उनके शासक और सेना गये हुए थे? वे एक उत्सवधर्मी जितिजी मानसिकता से ग्रस्त हैं। यह विजय निश्चित रूप से नागरिकों की नहीं है। यह शासकवर्ग की विजय है जो सत्ता और सैनिक का प्रयोग सिर्फ अपनी राज्यलिप्सा और शक्तिलिप्सा को पूरा करने के लिए प्रयुक्त करता है। नागरिक इस विजय या पराजय से निरपेक्ष, राजनीतिक रूप से सोये हुए हैं। अतः किसी भी प्रकार के युद्ध में जीतती या हारती सत्ताएँ हैं। आम आदमी उसमें सिर्फ कुरवान किया जाता है। विजय में उसका कोई दखल नहीं होता।
Q. 4. ‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है। इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है? बताइए।
उत्तर – युद्ध के सार्वभौम अमानवीय चरित्र पर कवि यहाँ कटाक्ष करते हुए कहता है कि इस तथाकथित विजयपर्व के धूमधाम में कई आम सैनिक, जो सत्ता में कोई दखल नहीं रखते, वे मार दिए जाते हैं। उनका हिसाब-किताव न सत्ता देना चाहती है और न ही जनता उनसे जानना चाहती है। कविता में यह पंक्ति बर्बर और अमानवीय सत्ता चरित्र और उसके समानांतर राजनीतिक रूप से रीढ़विहीन नागरिक समाज, दोनों को प्रश्नांकित करती है।
Q. 5. सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?
उत्तर – सड़कों को जीत कर लौट रही सेना के स्वागत के लिए सींचा जा रहा है।
Q. 6 बूढ़ा मशकवाठा क्या कहता है और क्यों कहता है ?
उत्तर – बूढ़ा मशकवाला कहता है कि यह तयाकथित विजय जुलूस थोया है। हम वस्तुतः जीते नहीं बल्कि पुनः हार गए हैं और गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। वह ऐसा इसलिए कहता है कि वह एक आम आदमी के प्रतिनिधि की तरह युद्धों में होने वाली मनुष्यता की कसाईगिरी से आहत है।
Q.7. बुढा मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है? सोचिए अगर वह जिम्मेदारी उसे मिलती तो क्या होता ?
उत्तर – बूढ़ा मशकवाला सच को दर्ज करने या बोलने की जिम्मेवारी से मुक्त है। अगर सच को दर्ज करने और बोलने की जिम्मेदारी उसे मिलती तो यह तथाकथित विजयपर्व झूठा साबित कर दिया जाता। वह लोगों से चीख चीखकर बता देता कि युद्ध में कुछ जमीन या धन हथिया लेने की हिंसक चेष्टा, जिसे हम अपनी जीत की रूप में महिमामंडित करते हैं, यह वस्तुतः जीत नहीं मनुष्यता की हार है। हम मौलिक लिप्सा के लिए इतने क्रूर हो जाते हैं कि अपने ही जैसों के प्राण लेने में जरा भी नहीं हिचकते।
Q.8. ‘जिन पर है ये सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं। जिन किनके लिए आया है? ये सेना के साथ कहाँ से आ रहे हैं, वे सेना के साथ क्यों थे, ये क्या जीतकर ठौटे हैं? बताएँ।
उत्तर – यहाँ ‘जिन’ युद्ध के परिणाम को दर्ज करने वाले इतिहासकारों तथा उद्घोषकों के लिए आया है। ये सेना के साथ युद्ध से लौट कर आ रहे हैं। सेना के साथ ये इसलिए थे कि शासक की इच्छा तथा निर्देशानुसार एक मिथ्या परिणाम घोषित कर सकें तथा प्रशस्ति पत्र, शिलालेख आदि के रूप में इस जीत का ब्यौरा दर्ज कर सकें। ये वस्तुतः जीतकर नहीं बल्कि व्यापक अर्थों में मानवता की हत्या करके और इस तरह से हार कर लौटे हैं।
Q. 9. गद्य कविता क्या है? इसकी क्या विशेषताएँ हैं? इस कविता को देखते परखते हुए बताएँ।
उत्तर – गद्य कविता मूलतः गद्य का ही एक रूप है, लेकिन हिन्दी में यह ज्यादा पुरानी विधा नहीं है। गद्य कविता का जो बाह्य कलेवर होता है, वह समसामयिक अनुभवों की विलक्षणता की त्वरित प्रतिक्रिया की तरह होता है। अर्थात् इसकी रूप संरचना का उत्स कवि के काव्यानुभव में होता है जो गद्यात्मक ही होता है। दैनंदिन जीवन के अनुभव से बोलचाल-बातचीत और सामान्य मन-चिंतन के रूप में उगा हुआ, विवरणधर्मी, युक्ति तर्क के कारण घुमावदार, पेचीदा और चौरस सा शिल्प इस तरह की कविता में होता है। प्रस्तुत कविता में चूँकि युद्ध के समाजशास्त्रीय अध्ययन की तर्ज पर एक तार्किक वहस सी दिखाई पड़ती है, अतः इसके अनुपंग में यह कविता भी उपरोक्त दिए गये अभिलक्षणों की पुष्टि करती है।
Q. 10. कविता में किस प्रश्न को उठाया गया है? आपकी समझ में इसके भीतर से और कौन से प्रश्न उठते हैं?
उत्तर – कविता में शासक वर्ग, राजनीति, युद्ध, इतिहास और आम आदमी को लेकर आधुनिक प्रसंगों में अनेक प्रश्न उठाये गये हैं। मेरी समझ से इतिहासदर्शन और इतिहासलेखन तथा सत्ता विमर्श के पहलू को भी यह कविता सामने प्रश्न के रूप में रखती है।
Q. 11. ‘हारजीत’ कविता में मशक वाले की क्या भूमिका है?
उत्तर – ‘हार-जीत’ कविता में मशक वाला बूढ़ा और अनुभवी है। उसके पास युद्धों से छौटकर आने वाली सेनाओं के लिए सड़कों को सींचने का जिम्मा है। वह युद्ध में शामिल होने और उसके साथ-असत्य को लिखने की सक्रिय जिम्मेदारी से मुक्त है। युद्धों का इतिहास दर अस् मानवता की हत्या का इतिहास होता है। लेकिन इस हत्या के इतिहास को सत्ता अपने हितों के अनुसार दर्ज कराती है। कवि भी दरअसल उस बूढ़े मशक वाले की तरह ही होता है। अगर सच को दर्ज करने और बोलने की जिम्मेदारी उसे मिलती तो यह तथाकथित विजयपर्व झूठा साबित कर दिया जाता। यह लोगों से चीख-चीखकर बता देता कि युद्ध में कुछ जमीन या धन हविया लेने की हिंसक चेष्टा को जिसे हम अपनी जीत की रूप में महिमामंडित करते हैं वह वस्तुतः जीत नहीं मनुष्यता की हार है। जनता युद्ध नहीं चाहती लेकिन सत्ता की लिप्सा के चलते जनता को युद्ध में हथियार या शिकार के रूप में सदा ही इस्तेमाल कर लिया जाता है।
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1. अशोक वाजपेयी का जन्म कब हुआ?
(क) 16 जनवरी, 1940
(ख) 16 जनवरी, 1941
(ग) 16 जनवरी, 1942
(घ) 16 जनवरी, 1943
उतर -16 जनवरी, 1941
2. अशोक वाजपेयी का जन्म स्थान कहाँ है?
(क) रायपुर, छत्तीसगढ़
(ख) दुर्ग, छत्तीसगढ़
(ग) अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़
(घ) बिलासपुर, छत्तीसगढ़
उतर -दुर्ग, छत्तीसगढ़
3. महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति कौन थे?
(क) विनोद कुमार शुक्ल
(ख) अशोक वाजपेयी
(ग) रमेशचंद शाह
(घ) नामवर सिंह
उतर -अशोक वाजपेयी
4. अशोक वाजपेयी मूलतः क्या हैं ?
(क) संपादक
(ख) आलोचक
(म) कवि
(घ) इनमें कोई नहीं
उतर -कवि
5. शहर अब भी संभावना’ के लेखक कौन हैं ?
(क) विनोद कुमार शुक्ल
(ख) गजानन माधव मुक्तिबोध
(ग) शमशेर बहादुर सिंह
(घ) अशोक वाजपेय
उतर -अशोक वाजपेयी
6. फिलहाल’ अशोक वाजपेयी की कैसी रचना है?
(क) आलोचना
(ख) कविता संग्रह
(ग) यात्रा संस्मरण
(घ) संपादित कृति
उतर -आलोचना
7. इनमें से किस पत्रिका का संपादन अशोक वाजपेयी ने किया है ?
(क) पूर्वग्रह
(ख़) बहूवचन्
(ग) समास
(घ) तीनों
उतर -तीनों