Download Pdf|तिरिछ 12th Hindi Chapter 12|लेखक के बारे में|पाठ का सारांश|VVI Subjectives Questions|VVI Objectives Questions

तिरिछ लेखक के बारे में

उदय प्रकाश आरंभ में कवि के रूप में चर्चित हुए। लेकिन धीरे-धीरे वे कहानीकार के रूप में ख्याति अर्जित करते गये। आज भी वे भारत सहित विश्व के अन्य देशों में एक उम्दा कहानीकार की हैसियत रखते हैं। उनकी कहानियों का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है, और हो रहा है। उनकी कहानियाँ अपने समय की कहानियों के फार्मूलाबद्ध, शुष्क नारेबाजी तथा छद्म वैचारिक अभियानों से मुक्त हैं। उनकी कहानियों में अनुभव की विविधता है। सामाजिक यथार्थ को गहरे इतिहासबोध के साथ उसकी पूरी तल्खी, क्रूरता और भयानकता के साथ उसी के अनुरूप भाषा और शिल्प में उदय प्रकाश अपनी कहानियों को रचते है।

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तिरिछ पाठ का सारांश

प्रस्तुत कहानी तिरिछ एक उत्तर-आधुनिक त्रासद कथा है। वस्तुतः तिरिछ के प्रति एक मनोवैज्ञानिक भय और पिता की सलामती का‌ प्रश्न लेखक को एक स्वप्नकथा की तरफ ले जाता है। वह यथार्थ और स्वप्न के बीच कहीं अटका सा अपने भय और समय के अंतराल को पाटने की कोशिश करता है। इसे जादुई यथार्थवाद कहा जाता है। गैब्रियल गार्सिया मार्वेज‌ ने इस उपन्यास शैली की सैद्धांतिकी निर्मित और विकसित की थी। दुनिया भर के तमाम देशों में जहाँ पूंजीवादी विकास तेजी से हुआ वहाँ यथार्थ और समय के बीच एक गहरी खाई पैदा हुई। गाँव और शहर के रूप में मानो दो अलग-अलग नई दुनिया ही बस गयी। भारत में भी यह घटित हुआ। एक तरफ संघर्षरत, अंधविश्वासग्रस्त परंतु अपनी ही जानी-पहचानी दुनिया में आश्वस्त और मस्त गाँव था तो दूसरी तरफ तथाकथित उत्तर-आधुनिक एवं अविश्वास और संदेहयुक्त, स्वार्थग्रस्त और आत्ममुग्ध शहर था। इस शहर में सभी शहरी वर्गीय चरित्र इसी अविश्वास, संदेह, स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता के प्रतीक बन जाते हैं। कहानी में आये शहर के बैंक मैनेजर, दरोगा, कैशियर, चौकीदार, मोची सब अलग-अलग वर्गीय चरित्र के हैं लेकिन सभी उत्तर-आधुनिकता की अपसंस्कृति अर्थात् संदेह, स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता से ग्रस्त अतः लेखक का पिता जो गँवई अंधविश्वास यानि तिरिछ के काटते या धतूरे के पीने से नहीं मरता, इसी शहरी अविश्वास के चलते मर जाता है। विडंबना यह है कि शहरी सभ्यता का हनक इतना हावी है कि उसके कुकृत्य का अभिशाप भी गँवई अंधविश्वास की पुष्टि में घटित हो जाता है। यह कहानी स्वप्नकथा (फैंटेसी) और यथार्थ के जटिल संश्लेष में बुनी गई है। कहानी अपने शिल्प तथा कथ्य, दोनों में समय और यथार्थ के द्वन्द्व को प्रकट करती हैं।

 

तिरिछ Subjective Question

Q.1. लेखक के पिता अपना परिचय हमेशा ‘राम स्वारथ प्रसाद….एक्स स्कूल हेडमास्टर….. एंड विलेज हेड ऑफ बकेली’ के रूप में देते थे, ऐसा क्यों? स्कूल और गाँव के बिना वे अपना परिचय क्यों नहीं देते?

उत्तर – वे अपने गाँव और उसमें रची-बसी परिचित दुनिया से बाहर नहीं झाँकना चाहते। शहर जाने से उनका मन हिचकता रहता है। वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि चरित्र हैं जो उत्तर-आधुनिक समय से पहले की है और जो शहरी सभ्यता से अपने को अजनबी पाती है। अपने को गलत और विक्षिप्त समझे जाते देखकर, प्रताड़ित होते पाकर लेखक के पिता का अपने परिचय के रूप में बार-बार ‘राम स्वारथ प्रसाद….. एक्स स्कूल हेडमास्टर……. एंड विलेज हेड ऑफ बकेली’ दरअसल शहर को ही नहीं, बल्कि स्वयं को भी अपना ही परिचय देने की अंतहीन कोशिश है। पिता यह कहकर अपनी रची-बसी दुनिया के बाशिंदे होने को मानो खुद से ही प्रमाणित करा रहे हों। वे शहरी व्यक्तिवाद के बरक्स अपने आप को इन विशेषणों से जोड़कर मानो एक सामूहिक परिचय दे रहे थे ।

 

Q.2. हालाँकि थानू कहता है कि अब तो यह तय हो गया कि तिरिछ के जहर से कोई बच नहीं सकता। ठीक चौबीस घंटे बाद उसने अपना करिश्मा दिखाया और पिताजी की मृत्यु हुई |’ इस अवतरण का अभिप्राय स्पष्ट करें।

उत्तर – पिता की मृत्यु दरअसल तिरिछ के से नहीं हुई थी, बल्कि शहर जाने के क्रम में धतूरे से नशे के चढ़ जाने और अपने व्यवहार पर नियंत्रण न रख पाने से, शहर के लोगों द्वारा विक्षिप्त, गलत और पाकिस्तानी घुसपैठिया तक समझ कर पीटे जाने से हुई थी। फिर भी लेखक के गाँव का मित्र थानू इस संयोग को तिरिछ के मिथ से ही जोड़ कर देखता है और कहता है कि तिरिछ के काटने से चौबीस घंटे में मौत हो ही जाती है, यह बात प्रमाणित हो गई है। लेखक कहानी में इसे विडंबनाबोध की तरह रखता है। शहर की सभ्यता की संवेदनहीनता गाँव को इतना भयाक्रांत रखती है कि इस वाकये से भी शहर बेदाग सा बच निकल जाता है और गँवई अंधविश्वास और गाढ़ा हो जाता है । यह उत्तर-आधुनिक विडंबनाबोध है कि कातिल शहरीपन को जानते हुए भी गाँव इसे प्रकट करने से डरता है।

 

Q.3. लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता, क्यों?

उत्तर – लेखक के स्वप्न का संबंध तिरिछ के प्रति एक जन्मजात भय से है। वह आत्मभ्रम से परिपूर्ण यथार्थ (हैलुशिनेटरी रियलिज्म) की मनोदशा में जीता है। शहर गये पिता की मौत की खबरें उसे एक काल्पनिक यथार्थ की तरफ ले जाती हैं जहाँ उसे लगता है कि जिस तरह वह अपने सपने में तिरिछ से बचने के लिए हर संभव प्रयास करता है, भय की चरम दशा और मौत को देखकर जिस तरह वह छटपटाकर चीख पड़ता है, उसी तरह की मनोदशा से शहर गये पिता गुजरे होंगे। वह तिरिछ से जुड़े मिथ को मिटाने के लिए उसे जंगल में जला आता है। पिताजी फिर भी मर जाते हैं। लेखक यह महसूस करता है कि तिरिछ से जुड़े अंधविश्वास की अपेक्षा शहर में व्याप्त अविश्वास ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है। इस तरह पिता की मौत के यथार्थ से परिचित हो जाने तथा तिरिछ के भी स्वयं द्वारा मार दिये जाने के बाद, उक्त मनोदशा से मनोवैज्ञानिक रूप से बाहर आ चुका है, अतः उसे अब तिरिछ का सपना नहीं आता।

 

Q. 4. लेखक के पिता के चरित्र का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – लेखक के पिता एक गँवई संस्कार के व्यक्ति हैं, जिन्हें शहर की दुनिया से एक मनोवैज्ञानिक डर सा लगता है। वे अपने गाँव और उसमें रची-बसी अपनी परिचित दुनिया से बाहर नहीं झाँकना चाहते। अपनी संतानों के लिए वे एक रहस्यमय व्यक्तित्व हैं। उनका कम बोलना, एक जवाबदेह पिता की तरह संतान और परिवार के प्रतिहै सारी जिम्मेदारियों को चुपचाप निभाते जाना, लेखक के अनुसार उन्हें उनके जीवन की सुरक्षा करने वाले अभेद्य किले के रूप में प्रकट करता था। बच्चे पिता से भयभीत भी हैं लेकिन अगाध प्रेम करते हैं, संरक्षित और सुरक्षित महसूस करते हैं। प्रत्येक गंवई गाँव के जिम्मेदार पिता की तरह लेखक के पिता भी एक प्रतिनिधि चारित्रिक व्यक्तित्व हैं।

 

Q.5. तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है? या, तिरिछ किसका प्रतीक है?

उत्तर – तिरिछ एक प्रकार का भयानक और विषैला जंतु है। इसे विषखापर भी कहा जाता है। कहानी में यह उत्तर-आधुनिक दौर में बदल रहे यथार्थ के भयावह रूप का प्रतीक बन जाता है। दरअसल जादुई यथार्थवाद की शैली में रची गई यह कहानी उत्तर-आधुनिक शहर और गंवई गाँव के बीच पैदा अलंघ्य खाई को एक दुःस्वप्न की शैली में प्रकट करती है। गाँव की मौत का जिम्मेदार यही तिरिछ रूपी आधुनिक समय है, जो शहर में गये पिता की मौत की कथा में प्रतीकात्मक ढंग से व्यंजित होता है।

 

Q.6. ‘अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा ले, तिरिछ पीछे पीछे आता है। क्या यहाँ तिरिछ केवल जानवर भर है? यदि नहीं तो उससे आँख क्यों नहीं मिलाना चाहिए?

उत्तर – तिरिछ यहाँ केवल जानवर भर न होकर एक मनोवैज्ञानिक भय का प्रतीक है। उत्तर- आधुनिक समय में जबकि तीव्र भौतिकवादी विकास ने शहर और गाँव के बीच एक अंतराल पैदा कर दिया था, वहाँ गँवई जीवन शैली और संवेदनाओं का अभ्यस्त व्यक्ति अजनबीयत का शिकार हो जाता है। उसे यह भय बना रहता है कि वह समय से कट गया है। समय उसकी हत्या कर देगा और वह बचने के लिए किसी की मदद न ले सकेगा। एक अंधविश्वास, जो कि सामूहिक अवचेतन का हिस्सा बन चुका है, कि तिरिछ से आँखें मिलने पर वह उस व्यक्ति को अंततः मार ही डालता है, यहाँ कहानी में समय के दूसरे छोर पर खड़े गाँव के लिए उसी समय और शहरी यथार्थ के भीषणतम रूप और व्यवहार से तादात्म्यीकृत हो जाता है।

 

Q.7. तिरिछ लेखक के सपने में आता था और वह इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक अपने आपको रोक नहीं पाता था। यहाँ परिचित आँखों से क्या आशय है?

उत्तर – लेखक के बाल मन में तिरिछ को लेकर एक भय घर कर चुका है। वह बार-बार इस भय से अपने को झटक कर अलग कर लेना चाहता है। लेकिन भय उसके मन से नहीं अलग होता है। यहाँ आँखों का परिचित होना दरअसल लेखक के चिर-संलग्न भय का ही प्रतीकात्मक प्रकटन है। लेखक का भय ही इतना गहन और परिचित है कि तिरिछ के रूप में वह भय, भाववाचक संज्ञा से व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में तब्दील हो जाता है, अर्थात् भय की परिचित उपस्थिति ही तिरिछ की देह से मानो मूर्त हो जाती है।

 

Q. 8. व्याख्या करें-

(क) वैसे, धीरे-धीरे मैंने अनुभवों से यह जान लिया था कि आवाज ही ऐसे मौके पर मेरा सबसे बड़ा अस्त्र है।

उत्तर – फ्रायड ने स्वप्न की प्रकिया के विषय में बतलाया है कि व्यक्ति जागृत अवस्था में जिस मनोदशा से प्रसन्न या आक्रांत रहता है, वही स्वप्न में फैंटेसी और स्वप्नकथाओं के रूप में एक आंतरिक परिवेश खड़ा कर देते हैं। लेखक को हाथी और तिरिछ से भय लगता था। स्वप्न में तिरिछ अक्सर उसे भय की चरम अवस्था तक ले जाता है। लेखक उसे चकमा देने के तमाम उपाय करता है, टेढ़े-मेढ़े भागता है, लंबी छलांग लेता है, छिपता है लेकिन उसे लगता है कि अब तिरिछ उसे मार ही डालेगा। भय और आसन्न मौत का देखकर वह चीख पड़ता है और उसे पता चलता है कि वह स्वप्न था । लेखक के साथ चूँकि यह अक्सर होता था, अतः वह एक आदत की तरह इस भयानक स्वप्न से बचने का एकमात्र अस्त्र आवाज लगाने के रूप में तय कर लेता है।

 

(ख) जैसे जब मेरी फीस की बात आई थी, उस समय हमारे पास का आखिरी गिलास भी गुम हो गया था और सब लोग लोटे में पानी पीते थे।

उत्तर – लेखक परिवार की आर्थिक तंगी का जिक्र करता है। वह सांकेतिक रूप में बताता है कि परिवार की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए घर की सामग्रियों को बेचा जाना भी एक रास्ता था। लेखक के फीस देने की स्थिति में घर में सामान्यतः प्रयोग की जाने वाली सामग्री गिलास भी नहीं थी। सभी लोग लोटे में पानी पीते थे। तात्पर्य यह कि परिवार की जरूरतों के अनुकूल आर्थिक हैसियत नहीं थी कि सबकुछ, सबके लिए और पर्याप्त मात्रा में सहजता से उपलब्ध हो सके।

 

(ग) आश्चर्य था कि इतने लंबे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह से जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मैंने उसे मारने की कोई कोशिश नहीं की थी।

उत्तर – लेखक थानू के साथ जंगल में उसी मरे हुए तिरिछ को जलाने जाता है, क्योंकि उसने सुन रखा था कि मरे हुए जानवर की आँखों से मारने वाले का चित्र अंकित हो जाता है और उसका साथी मारने वाले से बदला लेता है। लेखक चूँकि सपने में इसी तिरिछ से लड़ता-भिड़ता, हारता-भागता और पस्त होता हुआ जूझा करता था, अतः स्वप्न में वह परिवेश उसके लिए चिर-परिचित सा हो जाता है। पिता की सुरक्षा के प्रति निश्चिंत होने के लिए जब वह थान के साथ उसी जंगल में पहुँचता है तो उसे आश्चर्य होता है कि यह जगह तो उसके स्वप्नों में आती रही है। मुझे तो दिन में ही आकर इस तिरिछ को पहले ही मार देना चाहिए था।

 

(घ) मुझे यह सोचकर अजीब सी राहत मिलती है और मेरी फँसती हुई साँसें फिर से ठीक हो जाती हैं कि उस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा

उत्तर – लेखक शहर में गलत समझे जा रहे और पीटे जा रहे अपने पिता की मानसिक स्थिति से तादात्मय करता है। वह यह महसूस करता है कि सरल स्वभाव के पिता जी अपने प्रति हो रहे इस अमा व्यवहार विश्वास नहीं कर पा रहे होंगे। उन्हें लग रहा होगा कि वे कोई स्वप्न देख रहे हैं। लेखक को इसलिए एक मानसिक राहत (जो कि वस्तुतः उस क्रूर यथार्थ के प्रति एक आत्मप्रवंचना ही है) मिलती है कि चूँकि पिताजी उस समय उक्त अमानवीय व्यवहार को एक स्वप्न ही मान रहे थे, अतः उन पर पड़ने वाली ईंट, पत्थरों की मार भी अवास्तविक है। वे अपने आप को सपने में होने के प्रति इस तरह आश्वस्त मानते हैं कि अचानक उनकी नींद टूटेगी और आसपास अपने परिजनों या परिचितों को वे पायेंगे। इस आत्मप्रवंचक स्वप्न के माध्यम से वे अपने को उस घटित हो रहे क्रूरतम यथार्थ से बचाना चाह रहे थे।

 

Q.9. तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता है, क्यों?

उत्तर – लेखक तिरिछ को सपने में देखा करता है। वह तिरिछ से डरता है। उसके सपने से बचना चाहता है। सपने में वह उससे बचने की अंतिम कोशिशें करता है। इस दौरान वह जिन रास्तों, पगडंडियों से होकर गुजरता है, वे सब उसे जंगल में हू-ब-हू मिलते हैं। यहाँ विभ्रम और यथार्थ के बीच का फासला मिट गया है और लेखक अनुभूति की उस तीव्रतम अवस्था में पहुँच जाता है जहाँ उसे स्वप्न और यथार्थ के दृश्य एक से लगने लगते हैं। इसीलिए तिरिछ को जलाने एक लेखक को पूरा जंगल परिचित्त लगता है।

 

Q.10. इस घटना का संबंध पिताजी से है। मेरे सपने से है और शहर से भी है। शहर के प्रति जो एक जन्मजात भय होता है, उससे भी है। यह भय क्यों है ?

उत्तर – आधुनिक समय में जबकि तीव्र भौतिकवादी विकास ने शहर और गाँव के बीच एक अंतराल पैदा कर दिया था, वहाँ गँवई जीवन शैली और संवेदनाओं का अभ्यस्त व्यक्ति अजनबीयत का शिकार हो जाता है। उसे यह भय बना रहता है कि वह समय से कट गया है। समय उसकी हत्या कर देगा और वह बचने के लिए किसी की मदद न ले सकेगा। यह भय पिताजी में शहर जाने से यथासंभव बचने की मनोवृत्ति के रूप में प्रकट हुआ है । लेखक में यह तिरिछ द्वारा स्वप्न में उसकी हत्या कर देने के भय के रूप में आया है। पिता की शहर में मौत और लेखक के सपनों में तिरिछ का आतंक, दोनों घटनाएँ शहर के प्रति एक मानसिक भय का निर्माण कर देती हैं।

 

Q.11. कहानी में वर्णित ‘शहर’ के चरित्र से आप कितना सहमत हैं?

उत्तर – दुनिया भर के तमाम देशों में जहाँ पूंजीवादी विकास तेजी से हुआ, वहाँ यथार्थ और समय के बीच एक गहरी खाई पैदा हुई। गाँव और शहर में मानों दो नई दुनिया ही बस गयीं। भारत में भी यह घटित हुआ। एक तरफ संघर्षरत, अंधविश्वासग्रस्त परंतु अपनी ही जानी-पहचानी दुनिया में आश्वस्त और मस्त गाँव था तो दूसरी तरफ तथाकथित उत्तर-आधुनिक एवं अविश्वास और संदेहयुक्त, स्वार्थग्रस्त और आत्ममुग्ध शहर था। इस शहर में सभी शहरी वर्गीय चरित्र इसी अविश्वास, संदेह, स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता के प्रतीक बन जाते हैं। कहानी में आये शहर के बैंक मैनेजर, दरोगा, कैशियर, चौकीदार, मोची सब अलग-अलग वर्गीय चरित्र के हैं, लेकिन सभी उत्तर-आधुनिकता की अपसंस्कृति अर्थात् संदेह, स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता से ग्रस्त हैं। अतः लेखक का पिता जो गंवई अंधविश्वास यानि तिरिछ के काटने या धतूरे के पीने से नहीं मरता, इसी शहरी अविश्वास के चलते मर जाता है। कहानी में आया यह शहर सिर्फ नाम का शहर नहीं है बल्कि उत्तर-आधुनिक होते समय का विडंबनाग्रस्त शहर है और लेखक ने कहानी में उसके चरित्र को बिल्कुल सटीक व्यंजित किया है |

 

Q.12. लेखक के पिता के साथ एक दिक्कत यह भी थी कि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ तो उन्हें याद रहती थीं, शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? आप क्या सोचते हैं? लिखें।

उत्तर – याद वे ही चीजें या जगहें रहती हैं जहाँ व्यक्ति का आना-जाना होता रहे या उसके प्रति एक रागात्मक झुकाव हो । चूँकि लेखक के पिता गँवई संस्कार के व्यक्ति हैं जिन्हें शहर से, उसकी कृत्रिम जीवन शैली से एक जन्मजात डर सा लगा रहता है, वे शहर जाने से बचते रहते हैं, और अंततः शहर से कोई रागात्मक संबंध नहीं विकसित कर पाते । अतः शहर की सड़कें उन्हें शुष्क और एक जैसी, अपनी परिचित दुनिया से दूर ले जाने वाली लगती थीं और उस अपरिचित दुनिया में वे जाना नहीं चाहते थे। इसीलिए उनका परिचित परिवेश यानि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ उन्हें याद रहती थीं, शहर की अपरिचित सड़कें उनके लिए हमेशा अपरिचित ही रहतीं।

 

Q.13. स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री, नेपाली चौकीदार थापा, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता, थाने के एस. एच. ओ. राघवेंद्र प्रताप सिंह के चरित्र का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।

उत्तर – स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री, नेपाली चौकीदार थापा, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता, थाने के एस. एच. ओ. राघवेंद्र प्रताप सिंह सब अलग-अलग वर्गीय चरित्र के हैं, लेकिन सभी उत्तर-आधुनिकता की अपसंस्कृति अर्थात् संदेह, स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता से ग्रस्त हैं। वे शहर की तरह ही अजनबी के प्रति संदेह की दृष्टि रखते हैं। वस्तुतः वे उत्तर-आधुनिक पूंजीवाद के प्रतिनिधि चरित्र हैं जो संवेदनहीन और शुष्क हैं। लेखक के पिता के प्रति उनका संवेदनहीन तथा अमानवीय व्यवहार उन्हें एक ही श्रेणी में खड़ा करता है। सभी अपनी मानवीय जिम्मेदारियों से बचते हुए अंततः लेखक के पिता की मौत के कारण बनते हैं।

 

तिरिछ Objective Question 

1. उदय प्रकाश का जन्म कब हुआ?

(a) 1जनवरी, 1952 

(ख) 1 जनवरी, 1953 

(ग) 1 जनवरी, 1954 

(घ) 1 जनवरी, 1955

उतर – 1जनवरी, 1952 

 

2. उदय प्रकाश का जन्म कहाँ हुआ?

(क) राजनाँद गाँव, मध्य प्रदेश

(ख) अनूपपुर, मध्य प्रदेश

(ग) भोपाल, मध्य प्रदेश

(घ) ग्वालियर, मध्य प्रदेश

उतर – अनूपपुर, मध्य प्रदेश

 

3. ‘सुनो कारीगर’ के लेखक कौन है ?

(क) मलयज

(ख) उदय प्रकाश 

(ग) मुक्तिबोध

(घ) अज्ञेय

उतर – उदय प्रकाश 

 

4. ‘पीली छतरी वाली लड़की कहानी के लेखक कौन है ?

(क) अज्ञेय

(ख) मलयज 

(ग) उदय प्रकाश 

(घ) मुक्तिबोध

उतर – उदय प्रकाश 

 

 

 

 

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